*** अखंड भारतवर्ष व पौराणिक विवेचना ***
आत्मीय पाठकों,
नव उदगार ,नव उत्कर्ष, नव विचार हो
नव श्रृंगार कर धरा का नव चेतन आधार हो
नित नव सृजन करे स्नेह हर दिल में भरे
नव रचना लिख ह्र्दय पटल पर अंकित करे
अपनी संस्कृति और धरोहर का श्रृंगार करे
सहज ले जो धूमिल हो रही विरासत
आओ उदघोष करे
भारत भूमि फिर सोने की चिड़िया सी दमके
इस माटी से भाल का तिलक करे
विस्मृत हो रही वेद वाणी का
सिंदूरी छटा से अभिषेक करे
भारत भूमि को प्रणाम कर
नव वर्ष का जय जयकार करे
नमन करे,अभिनंदन करे
आओ मिलकर स्नेह की गंगा से
इस धरा को झंकृत करे ।।
पुस्तके ही वह माध्यम है जिससे आप लेख़क के विचारों मे गहन उतर कर सत्य तक पहुँच जाते है।
वर्तमान समय में विश्व में व्यापक परिवर्तन हो रहे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) के द्वारा दिए जा रहे सूचनाएं हमें सचेत(चैतन्य) करने के लिए पर्याप्त है। भारतवर्ष की वर्तमान सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दिनांक 20 मार्च, 2020 से उत्पन्न हुई कोविड १९ की विपदा अर्थव्यवश्था की नीव हिला दी है सभी व्यापार चौपट होने के कगार पर है,
व्यक्तिगत तौर पर 20 मार्च 2020 को मिले जनता कर्फ्यू का विशाल समर्थन मुझे विजय के प्रति आश्वस्त करता है फिर भी कुछ लोग ने स्थिति का हल्के मे लिया कोई नहीं इसकी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी पर वह प्राण से कम होनी चाहिए। युद्ध, महामारी में नुकसान तो होता ही है यदि भारतीय सहयोग कर सकें तो यह आर्थिक नुकसान भले ही थोड़ा ज्यादा हो परंतु सामाजिक और मानवीय क्षति न्यूनतम होगी ।
आत्मीय पाठकों,
नव उदगार ,नव उत्कर्ष, नव विचार हो
नव श्रृंगार कर धरा का नव चेतन आधार हो
नित नव सृजन करे स्नेह हर दिल में भरे
नव रचना लिख ह्र्दय पटल पर अंकित करे
अपनी संस्कृति और धरोहर का श्रृंगार करे
सहज ले जो धूमिल हो रही विरासत
आओ उदघोष करे
भारत भूमि फिर सोने की चिड़िया सी दमके
इस माटी से भाल का तिलक करे
विस्मृत हो रही वेद वाणी का
सिंदूरी छटा से अभिषेक करे
भारत भूमि को प्रणाम कर
नव वर्ष का जय जयकार करे
नमन करे,अभिनंदन करे
आओ मिलकर स्नेह की गंगा से
इस धरा को झंकृत करे ।।
पुस्तके ही वह माध्यम है जिससे आप लेख़क के विचारों मे गहन उतर कर सत्य तक पहुँच जाते है।
वर्तमान समय में विश्व में व्यापक परिवर्तन हो रहे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) के द्वारा दिए जा रहे सूचनाएं हमें सचेत(चैतन्य) करने के लिए पर्याप्त है। भारतवर्ष की वर्तमान सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दिनांक 20 मार्च, 2020 से उत्पन्न हुई कोविड १९ की विपदा अर्थव्यवश्था की नीव हिला दी है सभी व्यापार चौपट होने के कगार पर है,
व्यक्तिगत तौर पर 20 मार्च 2020 को मिले जनता कर्फ्यू का विशाल समर्थन मुझे विजय के प्रति आश्वस्त करता है फिर भी कुछ लोग ने स्थिति का हल्के मे लिया कोई नहीं इसकी कीमत हमें चुकानी पड़ेगी पर वह प्राण से कम होनी चाहिए। युद्ध, महामारी में नुकसान तो होता ही है यदि भारतीय सहयोग कर सकें तो यह आर्थिक नुकसान भले ही थोड़ा ज्यादा हो परंतु सामाजिक और मानवीय क्षति न्यूनतम होगी ।
मानव तन अमूल्य है समय का थोड़ा बहुत मूल्य है भौतिक वस्तुएं जीवन के समक्ष मूल्यहीन व छ्ण भंगुर है ।
परिवर्तन की इस विशिष्ट बेला में आज प्रत्येक व्यक्ति, समाज, राष्ट्र को मानवता के लिए समग्र रूप से सचेत होकर इस संक्रमण काल में आत्म चिंतन, सुधार, राष्ट्र क्रांति, और युगक्रांति के लिए सशक्त युवा नागरिक बनने का सौभाग्य प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान हुआ है,इसको चूक न जाये ।
प्राचीन काल से ही इस धरा ऋषि-मुनियों की परंपरा चली आ रही है। हमारे पूर्वज महान ऋषि, तत्वदर्शी, वैज्ञानिक, दार्शनिक तथा क्रांति दर्शी थे। वे तप पूर्वक सादगी पूर्ण अनुशासित एवं संयमित जीवन व्यतीत करते थे वे यज्ञमय में जीवन जीते हुए अनासक्त भाव से शाश्वत ज्ञान- विज्ञान का अध्ययन व प्रचार प्रसार करने में अहर्निश रत रहते थे । यज्ञों की भावना और तपस्या से स्वयं श्रेष्ठ मार्ग पर चलकर वाणी को उत्तम बनाकर देशवासियों को पथ प्रदर्शित करते थे ।
पुरातन ऋषि, मुनि, योगी, आचार्य, संत व तपस्वी हमारी सर्व प्राचीन संस्कृति के कर्णधार हैं। ऋषियों के विचार और अनुभव उद्भव काल से ही मानव मात्र को प्रेरणा और मार्गदर्शन देते आ रहे हैं । योग, अध्यात्म, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति एवं दर्शन जैसी मूल्यवान संपदाये हिमालय की कंदराओं में उदभूत हुई। ऋषि संस्कृति की अमूल्य निधि है ऐसी परम महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और बौद्धिक संपदा की ओर पूरा विश्व आकर्षित और ललायित था। विश्व के किसी भी कोने में रहने वाला कोई भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र इस महत्वपूर्ण संपदा की छाया में आश्रय लेने के लिए आतुर और व्यग्र था।
सत्य दृष्टा, तत्वदर्शी, युग वैज्ञानिक, ऋषि- मुनियों द्वारा दिए गए ज्ञान विज्ञान के जीवनदायी रहस्य को जानने की, अनुसरण करने की जिज्ञासा आज सभी में दिखाई पड़ती है। यह न केवल किसी देश विशेष के लिए अपितु संपूर्ण विश्व वसुधा के लिए सौभाग्य और गर्व की बात है ।
आत्मीय बंधुओ,
भारतवर्ष का शाब्दिक अर्थ है, भारतवर्ष = भा + रत + वर्ष वह देश काल जो अध्ययन मे रत रहे ।
हमारे संवत्सर की गणना विक्रम संवत 2077 व युगाब्ध 5122 है। अंग्रेजी वर्ष 2020 है।
श्री मद भगवत गीता मे वर्तमान SARS CoV 2 जन्य संक्रामक रोग COVID 19 का हल भी यह ही बताया है, जो भारत सरकार ने अपनाया है, यथा श्री क्रष्ण प्रोक्तं:
महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये। उन्होंने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र "नारायण अस्त्र" छोड़ दिया।
Main(C:)/नारायण अस्त्र
इसका कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था, यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था। भगवान श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र शस्त्र छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया, और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है। नारायण अस्त्र धीरे धीरे अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया। इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी।इस कथा प्रसंग का औचित्य ?हर जगह लड़ाई सफल नहीं होती। प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए सारे काम छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए, तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे।
शांति पुर्वक एकान्त मे चिन्तन मनन करे यदि मेरे आध्यात्मिक दर्शन से सहमत हो तो कमेन्ट करे । असहमत हो तो भी निःसंकोच बताये , यथा अभीष्ट
धर्मो रक्षति रक्षितः।
सभी देशों मे हिंसात्मक क्रियायें जोर पर है। मांसाहार, तामसिक प्रवृत्ति अधार्मिक उन्माद चरमता पर है । चीन, मध्य पुर्व देश, कोरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश अशान्त । भारतवर्ष परिपेक्ष्य मे कश्मीर, दिल्ली, उत्तर पूर्व भारत ,प. बंगाल, हैदराबाद, दक्षिण पुर्व भारत, केरल मे अशांति है । माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवमानना इन राज्यों में हो रही है। भारत के मुख्य न्यायाधिस भी इसका उल्लेख कर रहे है । राम जन्म भुमि आदेश, तीन तलाक़ कुरीति, अनुच्छेद 370 का विरोध CAA, NRC पर समुदाय विशेष फुट पडा, खुब देशी व विदेशी रोटियां सेंकने लगीं, सभी मौके पर चौंका, छक्का लगाने दिल्ली पहुँच गए।
फलस्वरूप दिसम्बर 2019 से मार्च, 2020 के बीच तीसहजारी गोली काण्ड, न्यायपालिका कार्यपालिका विवाद, शाहीनबाग उग्र प्रदर्शन का केंद्र बनाकर 02 दिसम्बर से 28 फरवरी तक खुब उत्पात काटा । अंकित शर्मा पर 400 से ज्यादा वार अमानुषिकता की पराकाष्ठा थी। दिल्ली हिंसा पर भी शांतिदुतो को खुब बल मिला, रोहिग्या जैसे नरभक्षी मासूम मजलूम नजर आते है। अमातुल्ला, ताहिर, अफजल, कसाब, शाहरुख खान टेररिस्ट नहीं हीरो लगते है।
हिमायती बुद्धिजीवी वर्ग, मुल्यविहीन नेताओ व वामपन्थियो द्वारा समर्थित हिंसा जे. न. यु, शाहीनबाग से भजनपुरा, सीलमपुर, मौजपुरा मे शांतिदूत की शांति का प्रतीक मात्र था, अभी पुरा भारत उस आग से जलाने हेतु अमादा बुद्धिजीवी वर्ग बिना कागज दिखाये धरना प्रदर्शन करके मोमबत्ती व आदिम युग मे जाने को उद्वेलित था।
राम भूमि पर अस्पताल व अपराधी अधिवक्ता, अवार्ड, टुकडॅ गैंग ने भारत को सीरिया का सीरियल कैपिटल बना ही डाला होता । यदि कुरान से करोना निकल कर चीन के रास्ते 57 महान देशो को छोडकर अन्य नास्तिक सो काल्ड सेकुलर देशो मे ही आया न होता । जैसा कि बताया जाता है, चुकि ये वायरस धर्म देखकर वार करेंगा इसलिए इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता है सोचकर खुब, मरकज व जमाते, सारे विश्व से भारत के विभिन्न राज्यो की मस्जिदो मे एकत्र हुइ, झूठ बोल कर कोरोना जिहाद प्रारम्भ कर दी ।
अस्सेलै वस्सल्लम बडा गरीब नवाज़ है।
सिर्फ उस पर इमान लाने वाले को पनाह देगा ।। आयत
बाकियों (काफिरो) को तो दोजख की आग मे जलने दो ।
#कोरोना नहीं रक्तबीज है ये अभक्ष्याहारी!
********** दुर्गासप्तशती अध्याय ८ *********
दुर्गासप्तशती अध्याय ८ में रक्तबीज दानव के उत्पत्ति और संहार की कथा मिलती है।रक्तबीज एक ऐसा दानव था जिसे यह वरदान था की जब जब उसके लहू की बूंद इस धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा जो बल,शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा | ये शुम्भ और निशुम्भ का मुख्य सेनानायक था जो माँ भगवती के विरुध्द प्रतिनिधित्व कर रहा था। माँ जगतजननी जगदम्बा जब भी इसपर कोई अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करती तो उसके हरेक बूंद से उतने ही रक्तबीज पैदा हो जाते थे।अन्त में माता अत्यंत कुपित हुई और उनके कोप के तेज़ से माँ भगवती महाकाली का प्रादुर्भाव हुआ जिनके स्वरूप देखकर काल भी डरता था।भगवती काली रक्तबीज को मारती और निकलने वाले रक्त को खप्पर में भरकर पान कर जाती।उनके जिह्वा पर भी रक्त जाने से रक्तबीज उत्पन्न होता था तो माँ उन्हें निगल जाती थी और इस प्रकार इस महादानव का विनाश सम्भव हो पाया।
आत्मीय मित्रों,
पूरी दुनिया आज भयाक्रांत है क्योंकि कोरोना वायरस जाने कितनों को ग्रास बना लिया कितने ग्रसित हैं और आगे कितने होंगे इसका कोई पता नहीं।ये वायरस भी ठीक रक्तबीज की तरह ही गुणोत्तररूप से पैदा हो रहा है और लोगो की जान ले रहा है। जो भी इसको ढूंढा इसके करीब गया इसे मिटाने के लिए शोध करना चाहा है सबको अपना ग्रास बना डाला।आज विश्व संकट बन चुका है। इस बीमारी का बचाव के अतिरिक्त कोई हल सामने नही दिखता है।
मुझे इन परिस्थितियों में बार बार भगवती काली की ही याद आई क्योंकि उनका प्रादुर्भाव ही हुआ था ऐसे काल से कलवित महादानव के संघार के लिए।उनमे ही ये क्षमता है कि अपनी विशाल कालिमा में काल को भी समाहित कर ले और जिनके प्रेम के वशिभूत होकर महाकाल उनका आधार बन जाएं और पुनः चारो तरफ प्रेम,आनंद,अभय,आस्तिकता, आरोग्य का ब्रह्मांड में संचार हो जाय।
जिस प्रकार ब्रह्माण्डीय ग्रहण(चंद्र और सूर्य) के काल में किया गया योग,ध्यान,जप,तप इत्यादि अनंतगुणा ज्यादा लाभकारी सिद्ध होता है ठीक ऐसे ही सम्पूर्ण मानव पर आये हुए ग्रहण से मुक्ति के लिए की गई प्रार्थना भी अनंत गुणा ही लाभकारी सिद्ध होना है कारण ये है कि जब कोई एक व्यक्ति विशेष पर कोई विपत्ति आती है और हम उसके विपत्ति के निवारण के लिए जब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं तो ईश्वर स्वयं को भी कल्याण का भागी बनाते हैं और सोचिये जब विश्व के अरबो लोगो पर आए विपत्ति के लिए जब हम प्रार्थना करेंगे तो प्रकृति के दृष्टिकोण में कितने बड़े कल्याण के भागी होंगे इसकी कल्पना नहीं कि जा सकती।चुकी प्रकृति हमे वही लौटाकर देती है जो हम उसे देते हैं ऐसे में हमारी सकारात्मक सोच और प्रार्थना भी जन्म जन्मांतर तक फलित ही होना है।
इन बातों से ऊपर उठकर भी एक बात कहना चाहूंगा कि जैसा मैंने बताया कि प्रकृति कुछ भी अपने पास नही रखती यानी जैसा उसे हम देंगे वो हमें दे ही देती है देर सवेर ऐसे में हम निःस्वार्थ भाव से क्यों न मिलकर इन विपत्ति के नाश के लिए प्रार्थना करें ताकि कर्म फल से भी मुक्त होकर ईश्वरत्व का भागी बनें!
सप्तशती के एक-एक मंत्र जागृत हैं और जल्दी फलित होते हैं इसलिए मैं कुछ मंत्रो को बता रहा हूँ,जिसे जो सुविधा लगे वो इसका पाठ करे और स्वयं के साथ साथ पूरी दुनिया को भी कल्याण का भागी बनाये क्योंकि "सर्वे संतु निरामयाः" यही तो सनातन संस्कृति है।
(१) सामूहिक कल्याण के लिये-
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्यानिश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यांभक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
(२) विश्वके अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये-
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तोब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च ।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनायनाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥
(३) विश्वकी रक्षा के लिये-
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि: ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जातां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
(४) विश्वके अभ्युदय के लिये-
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वंविश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्तिविश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्रा: ॥
(५) विश्वव्यापी विपत्तियोंके नाश के लिये-
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीदप्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वंत्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥
(६) विश्वके पाप ताप - निवारण के लिये -
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य : ।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशुउत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
🚩जयमहाकाली जयश्रीमहाकाल🚩
🌷ॐ शांति शांति शांति ।।
कोरोना भी अपनी समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा। श्रीकृष्ण जी का बताया हुआ उपाय है,यह व्यर्थ नहीं जाएगा ।
आत्मीय मित्रो,
वृद्धि दो तरह की होती है। पहली संख्यात्मक वृद्धि और दूसरी होती है गुणात्मक वृद्धि।
संख्यात्मक वृद्धि- यदि शतरंज के चौसठ खानों में क्रमशः 1, 2, 3…..62, 63, 64 कर के प्रत्येक खाने में उसकी संख्या के अनुसार गेहूं के दाने रखे जाते तो सभी 64 खानों में रखे गेहूं के कुल दानों का योग होता मात्र 2080 दाने और यह कहलाती है संख्यात्मक वृद्धि
गुणात्मक वृद्धि- जहां संख्यात्मक वृद्धि में 64 खानों का योग मात्र 2080 दाने होते हैं वहीं गुणात्मक वृद्धि में तो मात्र 11 खानों का योग ही 2047 दाने हो जाता है।
कोरोना वायरस की तेज वृद्धि और उसके विश्वव्यापी दुष्प्रभाव का आकलन करने के बाद ,कोरोनावायरस की वृद्धि को आप संख्यात्मक वृद्धि समझने की भूल कभी मत करना। हकीकत में कोरोना वायरस की वृद्धि एक गुणात्मक वृद्धि है इसलिए मेरी आप सभी से हाथ जोड़कर विनती है कि कोरोनावायरस को हल्के में ना लें। इस सम्बन्ध में आप जरा गम्भीर हो जाएं और मेहरबानी करके आगामी एक पखवाड़े तक अपने परिवार के साथ अपने घरों में ही बने रहें। इससे ना केवल आप खुद सुरक्षित रहेंगे अपितु इस महामारी को फैलने से रोकने की आप एक अहम कड़ी भी बनेंगे क्योंकि इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए एक कड़ी को तोड़ना ज्यादा फायदेमंद है, ज्यादा जरूरी है।
इसलिए न्यूनतम लाक डाऊन जरूरी था आवश्यकता होंने पर हमें इसके आगे भी तत्पर रहना चाहिए ।
आत्मीय मित्रों,
मैने Lockdown21 के ख़ाली समय का उपयोग करते हुए पांच भागों में पुस्तक "वैश्विक महामारी व भारतवर्ष 2020" को लिखा है, आप इसका अवलोकन करें व अपने बहुमूल्य विचारो व सुझावों से हमें अवश्य अवगत कराएं ।
प्रस्तुत है __"वैश्विक महामारी व भारतवर्ष 2020"
"जितनी लाशें बिछी हुई हैं दिल्ली के गलियारों में,
जितनी दुकानें, घर ख़ाक हुए हैं इन चौराहों में।
नहीं एक भी लाश, एक भी घर है उन नेताओं के,
जिनकी ज़हरीली ज़ुबा से, मौत बही फौव्वारो में ।।
उत्तर पश्चिमी, दिल्ली, 24 फरवरी, 2020
रक्त बैक में लहू नहीं है, बहते नालो में जस पानी,
भूख प्यास सब सह लेते, मंत्री भूखे हैं तस सत्ता के ।
जान लगाकर लड़ लेते, पर कैसे निपटे इन गद्दारों से,
सभी घर बैठे है, चैन नहीं रक्तबीज इन असुरों को ।।
सम्पुर्ण भारतवर्ष, 28 मार्च , 2020
जब शांति न हो समझाने से, माने ना कोई मनाने से,
केवल अपनी ही बात करे,पल-पल समाज पर घात करे।
तब एक मार्ग बच जाता है, बस, दण्ड काम तब आता है,
उठो वीर अब राम जगो, नमो आदित्य शिव-शक्ति जगो ।।
सम्पुर्ण भारतवर्ष, 30 मार्च , 2020
विस्तार : शिवा कान्त वत्स
भारत सरकार के अपनाये जा रहे निरोधात्मक उपाय के विरोधात्मक कार्य न करें,परन्तु आनन्द विहार दिल्ली से पलायन व निजामुद्दिन मरकज जमाते तब्गीली जैसी घटनाये समस्याओ को और भी गम्भीर बना देती है
अगर चिढ़ते हैं तो चिढ़ने दो, सभ्य मेहमान थोड़ी है,
ये सब हैं जाहिल, कोई अब्दुल कलाम थोड़ी है ।
फैलेगा कोरोना तो, आएंगे घर ज़द्द में इनके भी ।
यहाँ पे सिर्फ हमारा ही, मकान थोड़ी है ।
मैं जानता हूँ देश उनका भी था लेकिन,
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है।
हमारे मुंह से वहीं निकलेगा जो सच है,
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है।
जो आज मरकज से फैला रहे हैं कोरोना,
किराएदार है, इनके जाती मकान थोड़ी है।
बुलाते हैं जहा से, मरकज में फैलाते है कोरोना,
हिंदुस्तान इनके खाला का मकान थोड़ी है।
निजामुद्दीन, दिल्ली, 01अप्रैल, 2020
********मांडूक्योपनिषद *********
कोरोना भी अपनी समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा। श्रीकृष्ण जी का बताया हुआ उपाय है,यह व्यर्थ नहीं जाएगा ।
आत्मीय मित्रो,
वृद्धि दो तरह की होती है। पहली संख्यात्मक वृद्धि और दूसरी होती है गुणात्मक वृद्धि।
संख्यात्मक वृद्धि- यदि शतरंज के चौसठ खानों में क्रमशः 1, 2, 3…..62, 63, 64 कर के प्रत्येक खाने में उसकी संख्या के अनुसार गेहूं के दाने रखे जाते तो सभी 64 खानों में रखे गेहूं के कुल दानों का योग होता मात्र 2080 दाने और यह कहलाती है संख्यात्मक वृद्धि
गुणात्मक वृद्धि- जहां संख्यात्मक वृद्धि में 64 खानों का योग मात्र 2080 दाने होते हैं वहीं गुणात्मक वृद्धि में तो मात्र 11 खानों का योग ही 2047 दाने हो जाता है।
कोरोना वायरस की तेज वृद्धि और उसके विश्वव्यापी दुष्प्रभाव का आकलन करने के बाद ,कोरोनावायरस की वृद्धि को आप संख्यात्मक वृद्धि समझने की भूल कभी मत करना। हकीकत में कोरोना वायरस की वृद्धि एक गुणात्मक वृद्धि है इसलिए मेरी आप सभी से हाथ जोड़कर विनती है कि कोरोनावायरस को हल्के में ना लें। इस सम्बन्ध में आप जरा गम्भीर हो जाएं और मेहरबानी करके आगामी एक पखवाड़े तक अपने परिवार के साथ अपने घरों में ही बने रहें। इससे ना केवल आप खुद सुरक्षित रहेंगे अपितु इस महामारी को फैलने से रोकने की आप एक अहम कड़ी भी बनेंगे क्योंकि इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए एक कड़ी को तोड़ना ज्यादा फायदेमंद है, ज्यादा जरूरी है।
इसलिए न्यूनतम लाक डाऊन जरूरी था आवश्यकता होंने पर हमें इसके आगे भी तत्पर रहना चाहिए ।
आत्मीय मित्रों,
मैने Lockdown21 के ख़ाली समय का उपयोग करते हुए पांच भागों में पुस्तक "वैश्विक महामारी व भारतवर्ष 2020" को लिखा है, आप इसका अवलोकन करें व अपने बहुमूल्य विचारो व सुझावों से हमें अवश्य अवगत कराएं ।
प्रस्तुत है __"वैश्विक महामारी व भारतवर्ष 2020"
"जितनी लाशें बिछी हुई हैं दिल्ली के गलियारों में,
जितनी दुकानें, घर ख़ाक हुए हैं इन चौराहों में।
नहीं एक भी लाश, एक भी घर है उन नेताओं के,
जिनकी ज़हरीली ज़ुबा से, मौत बही फौव्वारो में ।।
उत्तर पश्चिमी, दिल्ली, 24 फरवरी, 2020
रक्त बैक में लहू नहीं है, बहते नालो में जस पानी,
भूख प्यास सब सह लेते, मंत्री भूखे हैं तस सत्ता के ।
जान लगाकर लड़ लेते, पर कैसे निपटे इन गद्दारों से,
सभी घर बैठे है, चैन नहीं रक्तबीज इन असुरों को ।।
सम्पुर्ण भारतवर्ष, 28 मार्च , 2020
जब शांति न हो समझाने से, माने ना कोई मनाने से,
केवल अपनी ही बात करे,पल-पल समाज पर घात करे।
तब एक मार्ग बच जाता है, बस, दण्ड काम तब आता है,
उठो वीर अब राम जगो, नमो आदित्य शिव-शक्ति जगो ।।
सम्पुर्ण भारतवर्ष, 30 मार्च , 2020
विस्तार : शिवा कान्त वत्स
भारत सरकार के अपनाये जा रहे निरोधात्मक उपाय के विरोधात्मक कार्य न करें,परन्तु आनन्द विहार दिल्ली से पलायन व निजामुद्दिन मरकज जमाते तब्गीली जैसी घटनाये समस्याओ को और भी गम्भीर बना देती है
अगर चिढ़ते हैं तो चिढ़ने दो, सभ्य मेहमान थोड़ी है,
ये सब हैं जाहिल, कोई अब्दुल कलाम थोड़ी है ।
फैलेगा कोरोना तो, आएंगे घर ज़द्द में इनके भी ।
यहाँ पे सिर्फ हमारा ही, मकान थोड़ी है ।
मैं जानता हूँ देश उनका भी था लेकिन,
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है।
हमारे मुंह से वहीं निकलेगा जो सच है,
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है।
जो आज मरकज से फैला रहे हैं कोरोना,
किराएदार है, इनके जाती मकान थोड़ी है।
बुलाते हैं जहा से, मरकज में फैलाते है कोरोना,
हिंदुस्तान इनके खाला का मकान थोड़ी है।
निजामुद्दीन, दिल्ली, 01अप्रैल, 2020
********मांडूक्योपनिषद *********
माण्डूक्योपनिषद अथर्ववेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखित है।
इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है। इसमें आत्मा या चेतना के चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता है - जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। प्रथम दस उपनिषदों में समाविष्ट केवल बारह मंत्रों की यह उपनिषद् उनमें आकार की दृष्टि से सब से छोटी है किंतु महत्व के विचार से इसका स्थान ऊँचा है, क्योंकि बिना वाग्विस्तार के आध्यात्मिक विद्या का नवनीत सूत्र रूप में इन मंत्रों में भर दिया गया है।
इस उपनिषद् में ऊँ की मात्राओं की विलक्षण व्याख्या करके जीव और विश्व की ब्रह्म से उत्पत्ति और लय एवं तीनों का तादात्म्य अथवा अभेद प्रतिपादित हुआ है। इसके अलावे वैश्वानर शब्द का विवरण मिलता है जो अन्य ग्रंथों में भी प्रयुक्त है।
इस उपनिषद में कहा गया है कि विश्व में एवं भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालों में तथा इनके परे भी जो नित्य तत्व सर्वत्र व्याप्त है वह ॐ है। यह सब ब्रह्म है और यह आत्मा भी ब्रह्म है।
आत्मा चतुष्पाद है अर्थात उसकी अभिव्यक्ति की चार अवस्थाएँ हैं जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय।
जाग्रत अवस्था की आत्मा को वैश्वानर कहते हैं, इसलिये कि इस रूप में सब नर एक योनि से दूसरी में जाते रहते हैं। इस अवस्था का जीवात्मा बहिर्मुखी होकर "सप्तांगों" तथा इंद्रियादि 19 मुखों से स्थूल अर्थात् इंद्रियग्राह्य विषयों का रस लेता है। अत: वह बहिष्प्रज्ञ है।
दूसरी तेजस नामक स्वप्नावस्था है जिसमें जीव अंत:प्रज्ञ होकर सप्तांगों और 19 मुर्खी से जाग्रत अवस्था की अनुभूतियों का मन के स्फुरण द्वारा बुद्धि पर पड़े हुए विभिन्न संस्कारों का शरीर के भीतर भोग करता है।
तीसरी अवस्था सुषुप्ति अर्थात् प्रगाढ़ निद्रा का लय हो जाता है और जीवात्मा क स्थिति आनंदमय ज्ञान स्वरूप हो जाती है। इस कारण अवस्थिति में वह सर्वेश्वर, सर्वज्ञ और अंतर्यामी एवं समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और लय का कारण है।
परंतु इन तीनों अवस्थाओं के परे आत्मा का चतुर्थ पाद अर्थात् तुरीय अवस्था ही उसक सच्चा और अंतिम स्वरूप है जिसमें वह ने अंत: प्रज्ञ है, न बहिष्प्रज्ञ और न इन दोनों क संघात है, न प्रज्ञानघन है, न प्रज्ञ और न अप्रज्ञ, वरन अदृष्ट, अव्यवहार्य, अग्राह्य, अलक्षण, अचिंत्य, अव्यपदेश्य, एकात्मप्रत्ययसार, शांत, शिव और अद्वैत है जहाँ जगत्, जीव और ब्रह्म के भेद रूपी प्रपंच का अस्तित्व नहीं है (मंत्र 7)
ओंकार रूपी आत्मा का जो स्वरूप उसके चतुष्पाद की दृष्टि से इस प्रकार निष्पन्न होता है उसे ही ऊँकार की मात्राओं के विचार से इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि ऊँ की अकार मात्रा से वाणी का आरंभ होता है और अकार वाणी में व्याप्त भी है। सुषुप्ति स्थानीय प्राज्ञ ऊँ कार की मकार मात्रा है जिसमें विश्व और तेजस के प्राज्ञ में लय होने की तरह अकार और उकार का लय होता है, एवं ऊँ का उच्चारण दुहराते समय मकार के अकार उकार निकलते से प्रतीत होते है। तात्पर्य यह कि ऊँकार जगत् की उत्पत्ति और लय का कारण है।
वैश्वानर, तेजस और प्राज्ञ अवस्थाओं के सदृश त्रैमात्रिक ओंकार प्रपंच तथा पुनर्जन्म से आबद्ध है किंतु तुरीय की तरह अ मात्र ऊँ अव्यवहार्य आत्मा है जहाँ जीव, जगत् और आत्मा (ब्रह्म) के भेद का प्रपंच नहीं है और केवल अद्वैत शिव ही शिव रह जाता है।
******** शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्।।******
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥1॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय॥2॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय॥3॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय॥5॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥6॥
#माण्डूकयोपनिषदमंत्र 12 मंत्र अर्थ-
‘ॐ’ – यह अक्षर ही सर्व है । सब उसकी ही व्याख्या है । भूत, भविष्य, वर्तमान सब ओंकार ही हैं । तथा अन्य जो त्रिकालतीत है, वह भी ओंकार ही है ॥१॥
यह सब कुछ ब्रह्म ही है । यह आत्मा भी ब्रह्म ही है । ऐसा यह आत्मा चार पादों वाला है ॥२॥
जाग्रत् जिसका स्थान है, बाहर की ओर जिसकी प्रज्ञा है, सात अंगों वाला, उन्नीस मुखों वाला, स्थूल विषय का भोक्ता, वैश्वानर ही प्रथम पाद है ॥३॥
स्वप्न जिसका स्थान है, अन्दर की ओर जिसकी प्रज्ञा है, सात अंगों वाला, उन्नीस मुखों वाला, सूक्ष्म विषय का भोक्ता, तैजस ही दूसरा पाद है ॥४॥
सोया हुआ, जब किसी काम की कामना नहीं करता, न कोई स्वप्न देखता है, वह सुषुप्ति की अवस्था है । सुषुप्ति जिसका स्थान है, एकीभूत और प्रज्ञा से घनीभूत, आनन्दमय, चेतनारूपी मुख वाला, आनन्द का भोक्ता, प्राज्ञ ही तीसरा पाद है ॥५॥
यह सबका ईश्वर है, यह सर्वज्ञ है, यह अन्तः आयामी है, यही योनि है, समस्त भूतों की उत्पत्ति-प्रलय का स्थान है ॥६॥
जो न अन्दर की ओर प्रज्ञा वाला है, न बाहर की ओर प्रज्ञा वाला है, न दोनों ओर प्रज्ञा वाला है, न प्रज्ञा से घनीभूत ही है, न जानने वाला है, न नहीं जानने वाला है, न देखा जा सकता है, न व्यवहार में आ सकता है, न ग्रहण किया जा सकता है, लक्षणों से रहित है, न चिन्तन में आ सकता है, न उपदेश किया जा सकता है, एकमात्र आत्म की प्रतीति ही जिसका सार है, प्रपञ्च से रहित, शान्त, शिव, अद्वैत ही चौथा पाद कहा जाता है । वही आत्मा है, वही जाननेयोग्य है ॥७॥
ऐसा वह आत्मा अक्षरदृष्टि से, मात्राओं का आश्रयरूप, ओंकार ही है । पाद ही मात्रा है और मात्रा ही पाद है, जो कि अकार, उकार और मकार हैं ॥८॥
जाग्रत स्थान वाला वैश्वानर ही अकार है । सबमे व्याप्त और आदि होने के कारण ही प्रथम मात्रा है । जो इस प्रकार जानता है वह समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है और सबमें प्रधान होता है ॥९॥
स्वप्न स्थान वाला तैजस ही उकार है । उत्कर्ष और उभयत्व के कारण ही द्वितीय मात्रा है । जो इस प्रकार जानता है वह ज्ञान की परम्परा को उन्नत करता है और समान भाव को प्राप्त होता है । उसके कुल में कोई ब्रह्मज्ञानहीन नहीं होता ॥१०॥
सुषुप्ति स्थान वाला प्राज्ञ ही मकार है । जाननेवाला और विलीन करने वाला होने के कारण ही तृतीय मात्रा है । जो इस प्रकार जानता है वह सबको जाननेवाला और सबको स्वयं में विलीन करने वाला होता है ॥११॥
मात्रारहित ही वह चतुर्थ है । अव्यवहार्य, प्रपञ्चरहित, शिव, अद्वैत, ओंकाररूप वह आत्मा आत्मा के द्वारा आत्मा में ही प्रविष्ट होता है, जो इस प्रकार जानता है, जो इस प्रकार जानता है ॥१२॥
मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रेन च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूंमैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूंमैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूंमैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूंमैं न सात धातु हूं,और न ही पांच कोश हूंमैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूंमैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोहन मुझे अभिमान है, न ईर्ष्यामैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूंमैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूंमैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञन मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूंमैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभावमेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा थामेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूंमैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
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*********** ॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥ **********
श्री रुद्राष्टकम् (संस्कृत: श्री रुद्राष्टकम्) स्तोत्र गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भगवान् शिव की स्तुति हेतु रचित है।
इसका उल्लेख श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है। यह जगती छंद में लिखा गया है |
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
अनुवाद भावार्थ:-
हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ।॥१॥
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।॥२॥
जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।॥३॥
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ।॥४॥
प्रचण्ड (रुद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दु:खों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ।॥५॥
कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत(प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।॥६॥
हे पार्वती के पति, जबतक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही तापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये।॥७॥
मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म [मृत्यु] दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।॥८॥
भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं।
*****भारतवर्ष_2020 जम्बूद्वीप*****
पृथ्वी को सात भागो (द्वीप)में से एक भाग जम्बूदीप है। इसमे पृथ्वी के अन्य द्वीप, वर्ष, पर्वत नदियो का वर्णन किया गया है।हिन्दु धर्म के विष्णु_पुराण के अनुसार पृथ्वी का वर्णन है। जिसे श्रीपाराशर जी ने श्री मैत्रेय ऋषि से किया था। विष्णुपुराण के अनुसार- "इसका वर्णन सौ_वर्षों में भी नहीं हो सकता है"। इसलिए ये संक्षेप वर्णन है।
"यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है:-
1) जम्बूद्वीप, 2) प्लक्षद्वीप,3) शाल्मलद्वीप, 4) कुशद्वीप,5) क्रौंचद्वीप, 6) शाकद्वीप,7) पुष्करद्वीप।
ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं।
ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं।
सभी द्वीपों के मध्य में जम्बुद्वीप जिसमे (मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक, इसराइल, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, हिन्दुस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का संपूर्ण क्षेत्र जम्बू द्वीप था। ) स्थित है।
और इस द्वीप के मध्य में सुवर्णमय सुमेरु पर्वत स्थित है। जसकी ऊंचाई 84000 योजन, और यह 16000 योजन पृथ्वी के अन्दर घुसा हुआ है।
इसका विस्तार, ऊपरी भाग में 32000 योजन है, तथा नीचे तलहटी में केवल 16000 योजन है। इस प्रकार यह पर्वत "कमल रूपी पृथ्वी की कर्णिका के समान है।"
सुमेरु के दक्षिण में-हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक वर्षपर्वत (वर्षपर्वत का मतलब ओ पहाड़ है जो पृथ्वी को सात भागो में बांटने का कार्य किये है ये जानकारी वेदों पर आधारित है, समय के अनुसार भगोलिक अवस्था बदलने के कारण आज की स्थिति में भिन्नता हो सकती है) हैं।
सुमेरु के उत्तर में-नील, श्वेत और शृंगी वर्षपर्वत हैं।
सुमेरु पर्वत के दक्षिण में-पहला भारतवर्ष (वर्तमान अफ़गानिस्ता, पाकिस्तान,भारत) दूसरा किम्पुरुषवर्ष तथा तीसरा हरिवर्ष(चीन से जावा तक का भाग) है।
इसके (मेरु के)दक्षिण में- रम्यकवर्ष ( रम्यकवर्ष पौराणिक भूगोल के वर्णन के अनुसार जंबूद्वीप का एक भाग था, जिसके उपास्य देव वैवस्वत मनु थे।
'विष्णुपुराण' में इसे जंबूद्वीप का उत्तरी वर्ष कहा गया है-
'रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्येवानु हिरण्यमयम्, उत्तरा: कुरवश्चेव यथा वै भारतं तथा।'
महाभारत, सभापर्व से जान पड़ता है कि अर्जुन ने उत्तर दिशा की दिग्विजय यात्रा के समय यहां प्रवेश किया था-
'तथा जिष्णु रतिक्रम्य पर्वतं नीलमायतम्, विवेशरम्यकं वर्ष संकीर्णं मिथुनै शुभैः।'
यह देश सुंदर नर-नारियों से आकीर्ण था। इसे जीतकर अर्जुन ने यहां से कर ग्रहण किया था-
'तं देशमथजित्वा च करे च विनिवेश्य च।'
उपर्युक्त उद्धरणों से रम्यकवर्ष की स्थिति उत्तर कुरु या एशिया के उत्तरी भाग साइबेरिया के निकट प्रमाणित होती है। इसके उत्तर में संभवतः हिरण्मय वर्ष था।
हिरण्यमयवर्ष (रूस का क्षेत्र )और तीसरा उत्तरकुरुवर्ष( ये भी रूस का ही क्षेत्र है) है।
उत्तरकुरुवर्ष द्वीपमण्डल की सीमा पार होने के कारण भारतवर्ष के समान धनुषाकार है। इन सबों का विस्तार नौ हजार योजन प्रतिवर्ष है। इन सब के मध्य में इलावृतवर्ष() है, जो कि सुमेरु पर्वत के चारों ओर नौ हजार योजन फ़ैला हुआ है। एवं इसके चारों ओर चार पर्वत हैं, जो कि ईश्वरीकृत कीलियां हैं, जो कि सुमेरु को धारण करती हैं।
********* अखंड भारत की कहानी **********
आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो।
अब यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती।
हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं। एवरेस्ट का नाम था सागरमाथा, गौरीशंकर चोटीपृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं।
आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो।
अब यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती।
हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं। एवरेस्ट का नाम था सागरमाथा, गौरीशंकर चोटीपृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं।
हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम् जिसे आज हिन्दमहासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊंची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदल दिया।
****** ये थीं अखंड भारत की 4 सीमाएं ********
अखंड भारत इतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों और एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है।
कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है।
इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।
अब तक 24 विभाजन-सन 1947 में भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24 वां विभाजन है।
अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके बाद 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है।
1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।क्या थी अखंड भारत की स्थितिसन 1800 से पहले विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके सब एकसे थे। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां की संस्कृति बदलने लगी।
2500 सालों के इतिहास में सिर्फ हिंदुस्तान पर हुए हमलेइतिहास की पुस्तकों में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज) इन सभी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया ऐसा इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।
रूस और ब्रिटिश शासकों ने बनाया अफगानिस्तान-1834 में प्रकिया शुरु हुई और 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रतता संग्राम से अलग हो गए। दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियंत्रण किसका हो? अफगानिस्तान शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था।
बादशाह शाहजहां, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
1904 में दिया आजाद रेजीडेंट का दर्जा-मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे। स्वतंत्रतता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में यहां तनाव था। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।
भूटान के लिए ये चाल चली गई-1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना शुरु किया। यहां के लोग ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक थे। यहां खनिज व वनस्पति प्रचुर मात्रा में थी। यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय धारा से अलग कर मतांतरित किया गया।
1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नए आयामों की रचना कर डाली। फिर एक नए टेश का निर्माण हो गया।
चीन ने किया कब्जा-1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला।
अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया रास्ता-1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से जाना पड़ सकता है। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतंत्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1935 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।दो देश से हुए तीन-1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। इसकी पटकथा अंग्रेजों ने पहले ही लिख दी थी। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भौगोलिक रूप से पाकिस्तान की थी। ये देश दो भागों में बंटा हुआ था और दोनों के बीच की दूरी थी 2500 किलो मीटर।
16 दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से एक अलग देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया।तथाकथित इतिहासकार भी दोषी, यह कैसी विडंबना है कि जिस लंका पर पुरुषोत्तम श्री राम ने विजय प्राप्त की ,उसी लंका को विदेशी बना दिया। रचते हैं हर वर्ष रामलीला।
वास्तव में दोषी है हमारा इतिहासकार समाज ,जिसने वोट-बैंक के भूखे नेताओं से मालपुए खाने के लालच में भारत के वास्तविक इतिहास को इतना धूमिल कर दिया है, उसकी धूल साफ करने में इन इतिहासकारों और इनके आकाओं को साम्प्रदायिकता दिखने लगती है। यदि इन तथाकथित इतिहासकारों ने अपने आकाओं ने वोट-बैंक राजनीति खेलने वालों का साथ नही छोड़ा, देश को पुनः विभाजन की ओर धकेल दिया जायेगा। इन तथाकथित इतिहासकारो ने कभी वास्तविक भूगोल एवं इतिहास से देशवासिओं को अवगत करवाने का साहस नही किया।
👉पाठक इन तथ्यों पर विचार अवश्य करें
आधा कश्मीर पाक को आधा लद्दाख और पूरा तिब्बत चीन को कब्जाने दिया ये हैं कांग्रेस की सबसे बड़ी उपलद्धियाँ जिसकी चर्चा कोई नहीं करता कांग्रेस भारत को खंड खंड करती रही और मुर्ख हिंदु उसे बार बार सत्ता सौंपते रहे आज भी कांग्रेस के आसपास मुस्लिम लीग और हिंदु विरोधी पार्टियों का गठबंधन कांग्रेस के साथ है पर मुर्ख हिंदु आज भी उसकी गुलामी के लिए तैयार बैठे हैं.✍️शर्म करो ,
जिस भारत के लिए क्रांतिकारियों ने जीवन न्योछावर कर दिया तुम उसकी रक्षा भी नहीं करना चाहते, धिक्कार है.! आधा कश्मीर ,आधा लद्दाख और पूरा तिब्बत ही नहीं गया सच इससे भी ज्यादा भयानक और खंडित हैज्यादा अतीत में न जायें तो भी 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज प्रशासनिक अफसर जब कलकत्ता के अपने दफ़्तर में बैठते थे तो प्रोटोकॉल के अनुसार उनके पीछे की दीवार पर उस भारत का मानचित्र लगा होता था जिसे वो "इंडिया" कहकर पुकारते थे।
आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि उस नक़्शे के अनुसार भारत का क्षेत्रफल था लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर जो आज घटकर मात्र लगभग 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गया है।
यानि 1857 के बाद हमने अपनी भारतभूमि का लगभग पचास लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग गँवा दिया।क्यों गँवा दिया इसकी चर्चा फिलहाल इसलिये फ़िज़ूल है क्योंकि हमें पता ही नहीं कि हमने इस अवधि में क्या-क्या खोया है और क्या-क्या गंवाया है। हम अगर गँवाने की बात करें तो लगता है अरे सैंतालिस में पाकिस्तान गया बस और क्या, जो कुछ अधिक पढ़-लिख गये वो गँवाने में सूची में बर्मा को भी जोड़ लेते हैं जबकि सच ये है कि पाकिस्तान (बांग्लादेश समेत) और बर्मा का सम्मिलित क्षेत्रफल केवल सत्रह लाख वर्ग किलोमीटर के लगभग बनता है यानि इसके अलावा भी हमने तेईस लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और गँवाया है।
मज़े की बात ये है कि गंवाने का ये क्रम 1947 की आजादी के बाद भी जारी रहा है।उस विस्तृत भारत में 'अदन' का इलाका कम से कम 1937 तक शामिल था। इसके साथ-साथ फारस की खाड़ी के त्रुशल स्टेट्स भी उसी नक़्शे में समाहित था, इसमें सोमालीलैंड शामिल था, इसी में श्रीलंका और सिंगापुर भी था। बलूचिस्तान और खैबर पख्तून'ख्वाँ का इलाका भी हमारा ही था। और ऐसा नहीं कि ये हिस्से ब्रिटेन के उपनिवेश थे इसलिये हम उन्हें अखंड भारत की सीमाओं में मान रहे हैं बल्कि ऐसा इसलिये है क्योंकि स्वयं ब्रिटिश लोग ये मानते थे कि ये सब अतीत से भारत के ही अंग रहे हैं।
अफगानिस्तान गया, सिंध गया, मुल्तान गया, बलूचिस्तान, आधा पंजाब और बांग्लादेश गया, कश्मीर गया और हम सिवाय कबूतर उड़ाने और ये डींग मारने में रह गये कि हम तो बड़े शांति वाले देश हैं जिसने किसी पर कभी आक्रमण नहीं किया। हालाँकि हमको कहना ये चाहिए था कि हम कटते-लूटते और सिमटते रहे पर इसके बाबजूद हमने कभी उफ़्फ़ भी न की, हमारी मातृभूमि जाती रही पर इसे लेकर हमारे अंदर कोई वेदना नहीं हुई।
अब तो हालत ये है कि हमारी एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसे ये कल्पना ही नहीं है कि देश के विभाजनों के साथ हमने क्या-क्या खोया है।
हमारी नई पीढ़ी में तो छोड़िये पुराने लोगों में भी कम ही हैं जिनको भारत का कटा-फटा नक्शा देखकर वेदना होती है। भगवान राम के जीवन की यात्राओं पर बनी "राम वन गमन स्थल परियोजना" का नाम आपने सुना होगा।
प्रभु राम के जीवन में अनेकानेक यात्राओं में एक यात्रा जो अयोध्या से लंका तक की है, ये परियोजना उसी यात्रा पर आधारित है पर बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि प्रभु के जीवन में यात्राओं के पाँच चरण है; जिसमें एक चरण वो है जब भगवान भारत-भूमि के अंदर तीर्थयात्रा कर रहे थे। अपने तीर्थयात्राओं के क्रम में प्रभु राम हिंगलाज माता मन्दिर भी गये थे, जो दुर्भाग्य से आज पाकिस्तान में है। प्रभु ने इस मंदिर में यज्ञ भी किया था और उस इलाके के राज्यों का संचालन सुचारू रूप से चले इसके लिये माँ से आशीर्वाद माँगा था। बाद में श्रीराम के पुत्र कुश और लव ने उन इलाकों में कुशपुर और लवपुर नाम से शहर बसाया था।
हिंगलाज भवानी के इस मंदिर में भगवान परशुराम भी आये थे और उसी जगह उनके पिता जमदग्नि ऋषि ने तपस्या किया था।आज हिंगलाज मंदिर हमारे पास नहीं है, वीजा लेकर उनके दर्शनों को जाने में भी तमाम दिक्कतें हैं और ये कहानी अकेले हिंगलाज की नहीं है, पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में अनगिनत मंदिर और तीर्थ थे जो अब नहीं है। दुःख की बात ये है कि हममें से किसी को भी खत्म होते और मिटते मंदिरों की सूची बनाने की भी कल्पना नहीं है, इन मंदिरों का अतीत और इतिहास क्या है इसकी चिंता तो बहुत दूर की बात है। वहां कितने मंदिर थे, कहाँ थे, किसने बनवाये थे, कब तक वहां पूजा-पाठ होती थी और कबसे पूजा-पाठ बंद है ये सब कौन सोचेगा अगर हम न सोच सकें तो?
नवरात्रि के पवित्र दिन चल रहे हैं कुछ और नहीं तो कम से कम एक संकल्प करिये कि भारत-भूमि के बाहर के ऐसे सारे मंदिरों, तीर्थ-स्थलों, गुरुद्वारों, बौद्ध-गुंफाओं के बारे में हमलोग कुछ न कुछ जानकारी इकट्ठी करें और आपस में सांझा करें।
बस इन भावों को आपस में जिंदा रखिये तो एक दिन यही कल्पना वास्तविकता में भी बदलेगी और अगर इतना भी नहीं कर सकते तो फिर और बुरे के लिये तैयार रहिये क्योंकि मान्धाता के समय भारत की सीमा पूरी दुनिया में विस्तारित थी जो आज घट के केवल 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गई है और ये संकुचन आगे भी जारी रहने वाला है।कभी हम जम्बू द्वीप थे , हमारी अहिंसा और मनावतावादी सोच ने सब मिटा दिया, नक्शे मे देख लिजिए जम्मूद्वीप कहाँ तक था फिर भी हम कहते हैं कुछ तो बात है हस्ती हमारी मिटती नहीं, और आज जम्मूद्वीप के एक छोटे से कोने में सिमट गए हैं जो अब वो भी खतरे में है..✍️
14 देश कभी थे जो अखंड भारत का हिस्सा - फिर हुआ इतिहास का सबसे बड़ा विभाजन-किसी देश का इतिहास उसका गौरव होता है। भारत का इतिहास भी गौरवपूर्ण है लेकिन इसके इतिहास के पन्नों में लूट के दाग और विभाजन का दर्द भी लिखा है। इस दुनिया में भारत अपनी तरह का अद्वितीय देश है। यहां बहुत सारी भाषाएं और बोलियां मौजूद है, यहां कदम कदम पर क्षेत्रीय रीति रिवाज और पहनावे भी बदलते जाते हैं। इन सबके बावजूद भी भारत एक देश है। किसी अंग्रेज ने कहा था कि भारत को एक देश मानना केवल कल्पना मात्र है क्योंकि यहां ना एक भाषा है और ना ही एक जैसे रीति रिवाज।
लेकिन शायद वह इस बात को भूल गया था की यही भारत की असली खूबसूरती है ,जिस कारण से प्राचीन काल से लेकर अब तक भारत एक देश है ॥
कुछ विभाजनकारी सोच के कारण भारत ने समय-समय पर खुद का बलिदान किया है। आप वास्तविक में भारत को जितना बड़ा समझते हैं, इतिहास के किसी समय वह इससे कई गुना बड़ा था। आज हम आपको वर्तमान के 14 ऐसे देश बताएंगे जो कभी भारत का हिस्सा थे ॥
पिछले 2500 वर्षों में हमारे देश में अनगिनत आक्रमणकारी आए। यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज आदि ने भारत पर आक्रमण किया, कहीं ना कहीं उस परिणाम की वजह से भारत के अनगिनत टुकड़े हो गए ॥
पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के एक चर्चित विभाजन है इनके विषय में लगभग सभी जानते हैं।
अन्य देशों के नाम हैं - अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया, इजिप्ट, तजाकिस्तान, कोलंबिया, श्रीलंका, मालदीव ॥ लेकिन यह तो केवल एक संक्षिप्त इतिहास है।
वास्तविक और विस्तृत इतिहास कहती है कि प्राचीन भारत के 24 टुकड़े हुए थे। निश्चित तौर पर यह इतिहास छुपा कर रखा जाता है ॥
**अठारह पुराण उनके नाम और उनका संक्षिप्त परिचय****
महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा विष्णु तथा महेश्वर उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं। इन 18 पुराणों के अतिरिक्त 16 उप-पुराण भी हैं किन्तु विषय को सीमित रखने के लिये केवल मुख्य पुराणों का संक्षिप्त परिचय ही दिया गया है। मुख्य पुराणों का वर्णन इस प्रकार हैः-
1.ब्रह्म पुराण
ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
2.पद्म पुराण
पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह गॅंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।
3.विष्णु पुराण
विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था।
इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैः
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः
(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।
4.शिव पुराण
शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलास पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।
5.भागवत पुराण
भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, दूारिका नगरी के जलमग्न होने और यादव वँशियों के नाश तक का विवर्ण भी दिया गया है।
6.नारद पुराण
नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध ऐवम कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है।
संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थि्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।
7.मार्कण्डेय पुराण
अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।
8.अग्नि पुराण
अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।
9.भविष्य पुराण
भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।
इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है।
ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है। यह पुराण भी भारतीय इतिहास का महत्वशाली स्त्रोत्र है जिस पर शोध कार्य करना चाहिये।
10.ब्रह्मवैवर्त पुराण
ब्रह्मवैवर्त पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।
11.लिंग पुराण
लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।
12.वराह पुराण
वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।
13.स्कन्द पुराण
सकन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।
14.वामन पुराण
वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उप्लब्द्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।
15.कुर्मा पुराण
कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।
16.मतस्य पुराण
मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है
17.गरुड़ पुराण
गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है।
साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्यों कि इस ग्रंथ को किसी सम्वन्धी या परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है।
समस्त योरुप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी। अंग्रेज़ी साहित्य में जान बनियन की कृति दि पिलग्रिम्स प्रौग्रेस कदाचित इस ग्रंथ से परेरित लगती है जिस में एक एवेंजलिस्ट मानव को क्रिस्चियन बनने के लिये प्रोत्साहित करते दिखाया है ताकि वह नरक से बच सके।
18.ब्रह्माण्ड पुराण
ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक प्रथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है।
परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।
हिन्दू पौराणिक इतिहास की तरह अन्य देशों में भी महामानवों, दैत्यों, देवों, राजाओं तथा साधारण नागरिकों की कथायें प्रचिलित हैं।
कुछ के नाम उच्चारण तथा भाषाओं की विभिन्नता के कारण बिगड़ भी चुके हैं जैसे कि हरिकुल ईश से हरकुलिस, कश्यप सागर से केस्पियन सी, तथा शम्भूसिहं से शिन बू सिन आदि बन गये। तक्षक के नाम से तक्षशिला और तक्षकखण्ड से ताशकन्द बन गये। यह विवरण अवश्य ही किसी ना किसी ऐतिहासिक घटना कई ओर संकेत करते हैं।
प्राचीन काल में इतिहास, आख्यान, संहिता तथा पुराण को ऐक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता था। इतिहास लिखने का कोई रिवाज नहीं था और राजाओ नें कल्पना शक्तियों से भी अपनी वंशावलियों को सूर्य और चन्द्र वंशों से जोडा है। इस कारण पौराणिक कथायें इतिहास, साहित्य तथा दंत कथाओं का मिश्रण हैं।
रामायण, महाभारत तथा पुराण हमारे प्राचीन इतिहास के बहुमूल्य स्त्रोत्र हैं जिन को केवल साहित्य समझ कर अछूता छोड़ दिया गया है। इतिहास की विक्षप्त श्रंखलाओं को पुनः जोड़ने के लिये हमें पुराणों तथा महाकाव्यों पर शोध करना होगा।
संकलन : शिवाकान्त_वत्स , एडवोकेट
********* शेष भाग दो में जारी है *********
आगामी लेखो में हम संस्मरण, अर्वाचीन बोधकथाएँ, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, आकाशगंगा, भौतिक आयामों व समय यात्रा पर चर्चा करेंगे।
व ईश्वर से इसके सतत उत्तरोत्तर उन्नति की कामना करते है |
ईश्वर सद्बुधि दे और सदा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे|
"असतो मा सद्गमय"
"तमसो मा ज्योतिर्गमय,"
"मृर्त्यो मा अमृतंर्गमयं ।।"
अगर आप इसे अंत तक पढे वसिर्फ LIKE और COMMENTS से अधिक संवाद कर सके।
हम प्रौद्योगिकी में इतने डूब गए हैं कि हमने सबसे महत्वपूर्ण बात भुला दी जो है "अच्छी दोस्ती"।
धन्यवाद.........
नई दिल्ली
दिनांकः 25/03/2020
लेखक : श्री शिवा कान्त वत्स
आगामी लेखो में हम संस्मरण, अर्वाचीन बोधकथाएँ, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, आकाशगंगा, भौतिक आयामों व समय यात्रा पर चर्चा करेंगे।
व ईश्वर से इसके सतत उत्तरोत्तर उन्नति की कामना करते है |
ईश्वर सद्बुधि दे और सदा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे|
"असतो मा सद्गमय"
"तमसो मा ज्योतिर्गमय,"
"मृर्त्यो मा अमृतंर्गमयं ।।"
अगर आप इसे अंत तक पढे वसिर्फ LIKE और COMMENTS से अधिक संवाद कर सके।
हम प्रौद्योगिकी में इतने डूब गए हैं कि हमने सबसे महत्वपूर्ण बात भुला दी जो है "अच्छी दोस्ती"।
धन्यवाद.........
नई दिल्ली
दिनांकः 25/03/2020
लेखक : श्री शिवा कान्त वत्स
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