Monday, July 20, 2020

वैश्विक महामारी व भारतवर्ष 2020( भाग #4) दूरदर्शन 
दूरदर्शन व वर्तमान प्रोद्योगिकी 
****************************

आत्मीय मित्रों,

प्रस्तुत है "वैश्विक महामारी व भारतवर्ष 2020 आगे का भाग दूरदर्शन व वर्तमान प्रोद्योगिकी 


जितनी लाशें बिछी हुई हैं दिल्ली के गलियारों में,
जितनी दुकानें, घर  ख़ाक हुए हैं इन चौराहों में।

नहीं एक भी लाश, एक भी घर है उन नेताओं के,
जिनकी ज़हरीली ज़ुबा से, मौत बही फौव्वारो में ।।

रक्त बैक में लहू नहीं है, बहते नालो में जस पानी,
भूख प्यास सब सह लेते, मंत्री भूखे हैं तस सत्ता के ।

जान लगाकर लड़ लेते, पर कैसे निपटे इन गद्दारों से,
सभी घर बैठे है, पर चैन नहीं रक्तबीज इन असुरों को ।।

जब शांति न हो समझाने से, माने ना कोई मनाने से,
केवल अपनी ही बात करे, पल-पल समाज पर घात करे।

तब एक मार्ग बच जाता है, बस, दण्ड काम तब आता है,
उठो वीर अब राम जगो, नमो आदित्य शिव-शक्ति जगो ।।

विस्तार : शिवा कान्त वत्स 
आत्मीय मित्रों, 

                 वास्तव में वह सत्य जो सभी चैतन्य लोगो ने लॉकडाhttps://skvats.com/ऊन के दौरान सीखा. वह है कि-ः

1. आज अमेरिका अग्रणी देश नहीं है।
2. चीन कभी विश्व कल्याण की नही सोच सकता।
3. यूरोपीय उतने शिक्षित नहीं जितना उन्हें समझा जाता था।
4. हम अपनी छुट्टियॉ बिना यूरोप या अमेरिका गये भी आनन्द के साथ बिता सकते हैं।
5. भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विश्व के लोगों से बहुत ज्याद है।
6. कोई पादरी, पुजारी, ग्रन्थी,मौलवी या ज्योतिषी एक भी रोगी को नहीं बचा सका।
7. स्वास्थ्य कर्मी,पुलिस कर्मी, प्रशासन कर्मी ही असली हीरो हैं ना कि क्रिकेटर ,फिल्मी सितारे व फुटबाल प्लेयर ।
8. बिना उपभोग के विश्व में सोना चॉदी व तेल का कोई महत्व नहीं।
9. पहली बार पशु व परिन्दों को लगा कि यह संसार उनका भी है।
10. तारे वास्तव में टिमटिमाते हैं यह विश्वास महानगरों के बच्चों को पहली बार हुआ।
11. विश्व के अधिकतर लोग अपना कार्य घर से भी कर सकते हैं।
12. हम और हमारी सन्तान बिना 'जंक फूड' के भी जिन्दा रह सकते है।
13. एक साफ सुथरा व शालीन जीवन जीना कोई कठिन कार्य नहीं है।
14. भोजन पकाना केवल स्त्रियां ही नहीं जानती।
15. मीडिया केवल झूठ और बकवास का पुलन्दा है।
16. अभिनेता केवल मनोरंजनकर्ता हैं जीवन में वास्तविक नायक नहीं।
17.भारतीय नारी कि वजह से ही घर मंदिर बनता है।
18. पैसे की कोई वैल्यू नही है क्योंकि आज दाल रोटी के अलावा क्या कर सकते हैं।
19. भारतीय अमीरों मे मानवता कुट-कुट कर भरीं हुईं है एक दो को छोड़कर।
20. विकट समय को सही तरीक़े से भारतीय ही संभाल सकता है।
21. सामुहिक परिवार एकल परिवार से अच्छा होता है।

क्या हार में क्या जीत में ।
किंचित नहीं भयभीत मैं ।
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।।

भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी उक्त कविता को अक्सर गाया करते थे ।

आज की दुःख स्थिति को भारतीयों ने किस प्रकार सुख में परिवर्तन कैसे किया जाता है, आज पूरी दुनिया को बता दिया है ।

आज भारत का एक वर्ग जो पाश्चत्य संस्कृति के पीछे पागलो की तरह भाग रहा था, और नकली ऐंठ में रहता था

उसे अपने घर में जब मजबूरन बैठना पड़ा तो उसने ठन्डे दिमाग से परिवार के साथ बैठकर अपने अभी तक जिये जा रहे जीवन पर चिंतन किया तो उसके कान खड़े रह गये ।

आज तक ये वर्ग पैसों के पीछे सुबह होते ही दौड़ पड़ता था और देर रात तक दौड़ता रहता था ।

दौड़ते दौड़ते ऊपर तक जाने तक कभी उन चीजों के बारे में सोचता ही नही था जिसका आनन्द आज वो मजबूरन घर में लॉक होने पर महसूस कर रहा है ।

अपने परिवार के साथ इतना लम्बा समय बिताना  24 घण्टे अपने बच्चों के साथ का सुखमय आनन्द लोग ले रहें है ।

बड़े शहरो में रहने वाला कॉर्पोरेट जगत में, ऑफिस में, प्राइवेट ऑफिसों में कार्य करने वाला यह बर्ग एक एक दिन के अवकाश के लिये तरस जाता था । कितने लोग अपने बच्चों के साथ सप्ताह में एक दिन भी भोजन नही कर पाते थे ।

आज नवरात्र का त्यौहार पुरे परिवार के साथ मनाना उनके लिये किसी वरदान से कम नही है ।

अपनी पत्नियों के हाथ का भोजन करके आज ये वर्गअपने को धन्य महसूस कर रहा है ।

पूरा जीवन सड़ा पिजा बर्गर और बाहर का खाना खा खाकर बीमार हो रहा यह वर्गआज अपनी सनातन जीवन पद्धति का आंनद समझ पा रहा है ।

इस वर्ग की कथित आधुनिक पत्नियां और पति आज अपने घर का कार्य अपने आप करके और अपने बच्चों को गृह कार्य में लगाकर उस आनन्द को समझ पा रहे है जो आनन्द हम बज्र स्वदेशी लोग प्यार के डंडे खाकर ले चुके है ।

जो कार्य बड़े बड़े प्रयावरण विद आज तक नही कर पाये उसे लॉक डाउन ने कर दिया ।
मशहूर गायक दलेर मेहदी आज कह रहे थे कि दिल्ली में 1985 के बाद अब उन्होंने नीला आसमान देखा ।
भारत ही नही पूरे विश्व के वातावरण में आश्चर्य जनक शुद्धता आयी है ।

कर्नाटक के समुद्र तट पर 8 लाख कछुओं के प्रजनन के लिये आने की बात माननीय कश्मीरी लाल जी पहले ही हम सबको बता चुके है ।नीली व्हेल भी समुद्र में अठखेली करती दिख रही है ।

गन्गा, यमुना माता का जल निर्मल हो चूका है ।

इसी लॉक डाउन के कारण रामायण , महाभारत जैसे सीरियल देखने से भारत में बना 1987 के बाद का मानसिक कचरा थोड़ा कम हो रहा है।

इसी लॉक डाउन के कारण लोग योग , व्यायायं , शाकाहार , गर्म पानी आयुर्वेद की शक्ति बर्धक औषधि ले रहे हैं ।
माननीय कश्मीरी लाल जी ने इस लॉक डाउन में स्वस्थ्य कैसे रहा जाय हम सबको बताया ही था ।
ब्यायायं , आराम , भोजन , भेषज , सफाई , खुश रहना आदि।

इस लॉक डाउन में विधर्मियो के देश द्रोही आचरण को दुनिया के सामने और प्रामाणिक तरीके से ला दिया है ।

आज मैं संगीत से जुड़े लोगों को सुन रहा था वह कह रहे थे कि हम लोगों ने जो आनन्द इस लॉक डाउन में महसूस किया है , हम लोग कहते है कि ऐसा ही लॉक डाउन हर हप्ते होना चाहिये ।

अरे भैया परिवार के साथ अपने घर में बर्षो बाद मौका मिला है आनन्द लीजिये और देश को बचाइये ।

५ अप्रैल को 9 बजे 9 मिनट 9 दिये मिट्टी के जलाना है ।

 8 अप्रैल को हनुमान जयंती है , राम जी टेंट से बाहर आ चुके है , घण्टा , शंख ध्वनि केआनन्द के साथ ।

*हरि: ॐ तत्सत्महाभटचक्रवर्ती रामदूताय नमः

श्रद्धा जो आहत करे, कभी न विजयी होय.
ईश्वर  के  दरबार  में,  जो जस करे सो होय.🕉️

*******महामारी*******

                       एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा।

तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि-

हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।

राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी "पानी" डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा।

इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे।

कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है।
दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग
अभी भी मर रहे हैं।

                          दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।

 मित्रों, जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है।

जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।

आत्मीय मित्रों,

                           अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं, मोदी जी तो आपको बार्डर पर युद्ध लड़ने के लिए तो कह नहीं रहे ना ही इस बेरोजगारी महंगाई मे एक एक बाल्टी दुध सुखे कुएं मे डालना है ।

                        कुछ बुद्धिजीवी परजीवी घर पर रह कर मोमबत्ती दिया फ़्लैशलाइट की रोशनी तो फैलानी है ,

उतना भी नहीं होता और चले थे संविधान बचाने, पुरा देश जला सकते है दीप प्रज्ज्वलन से आपत्ति है,

इन तथाकथित #वामपंथी #सेक्युलर #गजवा #बुद्धिजीवी परजीवी #कामचोर#चोर पार्टी # मरकज़ वालो को समुचित उत्तर देने की आज हमें ज़रूरत है।

#मरघटवाले_बाबा

3 अप्रैल/जन्म-दिवस श्री स्वामी नारायण***

                 भारत में अनेक महापुरुष ऐसे हुए हैं, जिनकी महानता के कारण लोग उन्हें साक्षात परमेश्वर या परमेश्वर का अवतार मानते हैं। श्री स्वामी नारायण ऐसे ही एक महामानव थे।

दिनांक तीन अप्रैल, 1781 (चैत्र शुक्ल 9, वि0संवत 1837) को श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या के पास स्थित ग्राम छपिया में उनका जन्म हुआ।

रामनवमी होने से सम्पूर्ण क्षेत्र में पर्व का माहौल था। पिता श्री हरिप्रसाद व माता भक्तिदेवी ने उसका नाम घनश्याम रखा। बालक के हाथ में पद्म और पैर में वज्र, ऊध्र्वरेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने कह दिया कि यह बालक लाखों लोगों के जीवन को सही दिशा देगा।

                 पांच वर्ष की अवस्था में बालक को अक्षरज्ञान दिया गया। आठ वर्ष का होने पर उसका जनेऊ संस्कार हुआ। छोटी अवस्था में ही उसने अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर लिया। जब वह केवल 11 वर्ष का था, तो माता व पिताजी का देहांत हो गया। कुछ समय बाद अपने भाई से किसी बात पर विवाद होने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और अगले सात साल तक पूरे देश की परिक्रमा की। अब लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे।

इस दौरान उन्होंने गोपालयोगी से अष्टांग योग सीखा। वे उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची, श्रीरंगपुर, रामेश्वरम् आदि तक गये। इसके बाद पंढरपुर व नासिक होते हुए वे गुजरात आ गये।

एक दिन नीलकंठवर्णी मांगरोल के पास ‘लोज’ गांव में पहुंचे। वहां उनका परिचय स्वामी मुक्तानंद से हुआ, जो स्वामी रामानंद के शिष्य थे। नीलकंठवर्णी स्वामी रामानंद के दर्शन को उत्सुक थे। उधर रामानंद जी भी प्रायः भक्तों से कहते थे कि असली नट तो अब आएगा, मैं तो उसके आगमन से पूर्व डुगडुगी बजा रहा हूं। भेंट के बाद रामानंद जी ने उन्हें स्वामी मुक्तानंद के साथ ही रहने को कहा। नीलकंठवर्णी ने उनका आदेश शिरोधार्य किया।

उन दिनों स्वामी मुक्तानंद कथा करते थे। उसमें स्त्री तथा पुरुष दोनों ही आते थे। नीलकंठवर्णी ने देखा अनेक श्रोताओं और साधुओं का ध्यान कथा की ओर न होकर महिलाओं की ओर होता है। अतः उन्होंने पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए अलग कथा की व्यवस्था की तथा प्रयासपूर्वक महिला कथावाचकों को भी तैयार किया। उनका मत था कि संन्यासी को उसके लिए बनाये गये सभी नियमों का कठोरतापूर्वक पालन करना चाहिए।

                         कुछ समय बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठवर्णी को पीपलाणा गांव में दीक्षा देकर उनका नाम सहजानंद रख दिया। एक साल बाद जेतपुर में उन्होंने सहजानंद को अपने सम्प्रदाय का आचार्य पद भी दे दिया। इसके कुछ समय बाद स्वामी रामानंद जी का शरीरांत हो गया। अब स्वामी सहजानंद ने गांव-गांव घूमकर सबको स्वामीनारायण मंत्र जपने को कहा।

उन्होंने निर्धन सेवा को लक्ष्य बनाकर सब वर्गों को अपने साथ जोड़ा। इससे उनकी ख्याति सब ओर फैल गयी। वे अपने शिष्यों को पांच व्रत लेने को कहते थे। इनमें मांस, मदिरा, चोरी, व्यभिचार का त्याग तथा स्वधर्म के पालन की बात होती थी।

                      स्वामी जी ने जो नियम बनाये, वे स्वयं भी उनका कठोरता से पालन करते थे। उन्होंने यज्ञ में हिंसा, बलिप्रथा, सतीप्रथा, कन्या हत्या, भूत बाधा जैसी कुरीतियों को बंद कराया। उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः गुजरात रहा। प्राकृतिक आपदा आने पर वे बिना भेदभाव के सबकी सहायता करते थे। इस सेवाभाव को देखकर लोग उन्हें भगवान का अवतार मानने लगे। स्वामी जी ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, इनके निर्माण के समय वे स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे।

                    धर्म के प्रति इसी प्रकार श्रद्धाभाव जगाते हुए स्वामी जी ने 1830 ई0 में देह छोड़ दी। आज उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं। वे मंदिरों को सेवा व ज्ञान का केन्द्र बनाकर काम करते हैं। गांधीनगर (गुजरात) तथा दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।

**************************************

Main(C:)/- ईका/दूरदर्शन/रामायण/प्रोद्योगिकी/1984

1976  में फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए।

एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया।

रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।

भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था।

1984 में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।

इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।

जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और वेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।

दूरदर्शन 'रामायण' दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। 

दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली।
                       ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था।

                     सूचना एवं प्रसारण मंत्री बी एन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा।

हालांकि राजीव गांधी के हस्तक्षेप से विरोध शांत हो गया।

                            इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा।
                       एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया।
ये वहीं समय था जब रामानंद सागर जैसे निर्माताओं के पैर दुबई के अंडरवर्ल्ड के कारण उखड़ने लगे थे।
दुबई का प्रभाव बढ़ रहा था, जो आगे जाकर दाऊद इंडस्ट्री में परिवर्तित हो गया।

1986 में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई।
25 जनवरी 1987 को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था।

                              दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू (Public Curfew) लगने लगा।

इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।

अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते।

एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है।

साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ' तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है।

हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।'

आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला।
आज इतिहास पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है।
उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, कल इससे भी अधिक देखेंगे।
उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक पुनः पहुंच सकेगी।
शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरे।
कल चले राम बाण, और कोरोना का वध हो।

*सत्यम_शिवम_सुन्दरम*

बरसों बाद दूरदर्शन पर लौटा है।

तुष्टिकरण की चटनी, सेकुलरिज्म का चम्मच और ये लाल चड्डी (वामपंथी जीव)

अस्सी के दशक में भारत में पहली बार रामायण जैसे हिन्दू धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ, और नब्बे के दशक आते आते महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली, यह वास्तविकता है की जब रामयण दूरदर्शन पर रविवार को शुरू होता था... तो सड़कें, गलियाँ सूनी हो जाती थी।
अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी कि रामायण सीरियल में राम बने अरुण गोविल अगर सामने आ जाते तो लोगों में उनके पैर छूने की होड़ लग जाती... इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में लोगो पर पूरी तरह से जादू सा कर दिया.।
पर धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की, क्योकि एक तथाकथित धर्म निरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीज़े दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती है ? इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है.-
जो कि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है। इसी वजह से सरकार को उन दिनों
“अकबर दी ग्रेट ”.....टीपू सुलतान....अलिफ़ लैला....और ईसाईयों के लिए “दयासागर“
जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी।
सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे...
तब हर साल एक केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमे विपक्षी दल भी आते थे....
मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेसी जन उठे और अपनी बात रखते हुये कहा कि....
ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडियो पर जो भक्ति संगीत बजता है, वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है...
इसे बंद किया जाए, बड़ा जटिल प्रश्न था उनका,। 

उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू विद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी,
स्कूलों में रामायण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए, सरस्वती वंदना कांग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई, महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना,। 

ये कांग्रेस सरकार की ही देन थी, केन्द्रीय विद्यालय का लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था
भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओ के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है को सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है, किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके हैं,
इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जबकि रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है...।
कांग्रेस यूपीए सरकार के समय हमारे रास्ट्रीय चैनल दूरदर्शन से “सत्यम शिवम सुन्दरम” को हटा दिया गया था,
ये भूल गए है कि ये देश पहले भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी है ये स्वयं घोषित हिन्दू देश है।
आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर
“धर्म चक्र प्रवार्ताय अंकित है....।
राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद--धर्मम चर“ अंकित है....
भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“.... और
सर्वोच्च न्यायलय का अधिकारिक वाक्य है, “यतो धर्मो ततो जयः“ यानी जहाँ धर्म है वही जीत है....
आज भी दूरदर्शन का लोगो... सत्यम शिवम् सुन्दरम है।
ये भूल गए हैं कि आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है...
ये भूल गए है कि भारत की आर्थिक राजधानी में स्थित मुंबई शेयर बाजार में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है...।
ये कम्युनिस्ट भूल गए है कि स्वयं के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा,
वो बंगाल.... वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है... ये भूल गए है की इस धर्म निरपेक्ष देश में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वयं भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राम-लक्ष्मण की आरती उतारते है...
और ये सारे हिंदुत्ववादी परंपराए इस धर्मनिरपेक्ष मुल्क में होती है...।
हे धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों....!
तुम धर्म को नहीं जानते, और इस सनातन धर्मी देश में तुम्हारी शातिर बेवकूफी अब ज्यादा दिन तक चलेगी नही .
अब भारत जाग रहा है, अपनी संस्कृति को पहचान रहा है।

कम्युनिस्ट क्या है?, कौन है?, थोड़ा समझिए.।
यदि आपके घर में काम करने वाले नौकर से कोई आकर कहे, कि तुम्हारा मालिक तुमसे ज्यादा क्यों कमा रहा है? तुम उसके यहां काम मत करो, उसके खिलाफ आंदोलन करो, उसे मारो और अगर जरूरत पड़े तो हथियार उठाओ, हथियार मैं ला कर दूंगा। यह सलाह देने वाला व्यक्ति कम्युनिस्ट है..अगर कोई गरीब मजदूर, जो किसी ठेकेदार या किसी पुलिस वाले का सताया हो, उसको यह कहकर भड़काना, कि पूरी सरकार तुम्हारी दुश्मन है, इन्हें मारो और अपना खुद का राज्य बनाओ। तुम्हें हथियार में दूंगा। यह आदमी कम्युनिस्ट है..अगर कोई आपके पुरखों के वैभव और शानदार इतिहास को छुपाकर आपको यह बताए, समझाए और पढ़ाए कि दूसरे देश तुम से बेहतर हैं, तुम कुछ भी नहीं हो, यह हीन भावना जगाने वाला आदमी कम्युनिस्ट है।
एक चलते हुए कारखाने को कैसे बंद करना है, एक सुरक्षित देश में कैसे सेंध लगानी है, अच्छे खासे युवा के दिमाग में कैसे देशद्रोही का बीज बोना है, किसी सिस्टम के सताए मजबूर इंसान को कैसे राष्ट्रविरोधी नक्सली बनाना है.. यह सब कम्युनिस्टों की विचारधारा है। पश्चिमी बंगाल और केरल में वामपंथी अनेक दशकों तक सत्ता में रहे लेकिन कोई आदर्श स्थापित नहीं कर पाए सिवाए आधे-अधूरे भूमिसुधार के जिसकी बदोलत वे इतने साल सत्ता में रह पाए | इसके अतिरिक्त वे कोई छाप नहीं छोड़ पाए- न भ्रष्टाचार कम हुआ, न गरीवी का उन्मूलन हुआ न उद्योग धंधे न रोजगार में वृद्धि न स्वास्थ्य और शिक्षा का विकास हुआ और न ही जातिवाद का खात्मा हो पाया |


शेष अगले भाग में

कहानी ईका/ECI/EC TV की

🙏 शिवा कान्त "वत्स" 🙏

Fb.com/ShivaKant.Vats


🕉️ॐ नमः शिवाय/श्लोक/।।श्री।।/Reloaded Main(C:) 
Reports;
सुर्य कान्त  वत्स/शिवा कान्त वत्स/Main(C:)/
Fb.com/ShivaKant.Vats  🕉️

MAIN(C:)/दिल्ली/ लालकिला/ जामा मस्जिद/ मरघट बाबा / दिल्लीगेट/ITO/ CP /कश्मीरीगेट /तीस हजारी / विश्व विद्यालय / जे न यु/ झण्डेवालान / पहाड़गंज/ नरायणा/ दिल्ली के मालिक/ स्वराज/ चौकीदार/ तीन तलाक़ / शरिया/ इस्लाम /UCC /हाईकोर्ट/ सुप्रीम कोर्ट/ कश्मीर 370/ CAA NRC/अयोध्या/मक्का/ शाहीनबाग/ सीलमपुर/ शास्त्रीपार्क/ भजनपुरा/यमुना विहार/ मौजपुरा/ दुर्गापुरी/ वेलकम/ कडकडडूमा/ शाहदरा/ खजूरी नार्थ ईस्ट के सभी इलाकों से पंजाबी बाग / मानसरोवर गार्डन/ रमेश नगर /सुदर्शन पार्क/नांगल राय/ हरिनगर /जनकपुरी/ दिल्ली हाट/ रोहिणी/प्रशांत विहार /अशोकविहार/ साउथ एक्स / /कालकाजी/ तिलक नगर /रिठाला / रोहिणी / शालीमार बाग / पीतमपुरा/ लाजपत नगर /अन्य इलाके /मॉडल टाउन / देश के और मानवता के दुश्मन /कोरोना/GTB/IHBAS/आनन्द विहार / नोयडा/ समयपुर बदली /गुरूग्राम/ गाजियाबाद/ लोनी/ नमोआदित्याय/ मरकज़/ राम नवमी/ ४ अप्रैल /एल जी/दूरदर्शन/रामायण/ दीपोत्त्सव


**** शेष अगले भाग में जारी है ***

                 आगामी लेखो में हम  संस्मरण, अर्वाचीन बोधकथाएँ, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, आकाशगंगा, भौतिक आयामों व समय यात्रा पर चर्चा करेंगे।व ईश्वर से इसके सतत उत्तरोत्तर उन्नति की कामना करते है |ईश्वर सद्बुधि दे और सदा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे|

"असतो मा सद्गमय""तमसो मा ज्योतिर्गमय,""मृर्त्यो मा अमृतंर्गमयं ।।"

अगर आप इसे अंत तक पढ़ते हैं, तो मैं चाहता हूँ कि आप मेरे बारे में  "कुछ शब्द" के साथ टिप्पणी (कमेन्ट) करें।

              आइए देखते हैं कि हमारे इस सन्देश को किसने पढ़ने और जवाब देने के लिए समय दिया !!आप में से बहुत से लोग मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं।आप मेरे साथ जुड़े हैं अतः मैं विश्वास कर सकता हूँ कि आप मेरी रचनाओं को पसंद करते हैं।

मुझे अच्छा लगेगा यदि हम कभी भी सिर्फ LIKE और COMMENTS से अधिक संवाद कर सके । 

हम प्रौद्योगिकी में इतने डूब गए हैं कि हमने सबसे महत्वपूर्ण बात भुला दी जो है "अच्छी दोस्ती"। यह एक छोटा सा सामाजिक प्रयोग होगा। 

धन्यवाद...
लेखक: श्री शिवा कान्त वत्स
( अधिवक्ता व व्यापार  परामर्शदाता  )

ॐ नमः शिवाय/श्लोक/।।श्री।।/Reloaded Main(C:) Reports;

सुर्य कान्त  वत्स/शिवा कान्त वत्स/Main(C:)/Fb.com/ShivaKant.Vats  🕉️

No comments:

Post a Comment